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Sunday, 10 February 2019

तू तो वो जालिम है जो ..

तू तो वो जालिम है जो

तू तो वो जालिम है जो दिल में रह कर भी मेरा न बन सका , ग़ालिब
और दिल वो काफिर, जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया

दुःख दे कर सवाल करते हो..

दुःख दे कर सवाल करते हो

दुःख दे कर सवाल करते हो
तुम भी ग़ालिब कमल करते हो

देख कर पूछ लिया हाल मेरा
चलो कुछ तो ख्याल करते हो

शहर-ऐ-दिल में उदासियाँ कैसी 
यह भी मुझसे सवाल करते हो

मारना चाहे तो मर नहीं सकते
तुम भी जिन मुहाल करते हो

अब किस किस की मिसाल दू में तुम को
हर सितम बे-मिसाल करते हो

आज फिर इस दिल में बेक़रारी है..

आज फिर इस दिल में बेक़रारी है

आज फिर इस दिल में बेक़रारी है
सीना रोए ज़ख्म-ऐ-कारी है
फिर हुए नहीं गवाह-ऐ-इश्क़ तलब 
अश्क़-बारी का हुक्म ज़ारी है
बे-खुदा , बे-सबब नहीं , ग़ालिब
कुछ तो है जिससे पर्दादारी है

वफ़ा के ज़िक्र में ग़ालिब..

वफ़ा के ज़िक्र में ग़ालिब

वफ़ा के ज़िक्र में ग़ालिब मुझे गुमाँ हुआ 
वो दर्द इश्क़ वफाओं को खो चूका होगा ,

जो मेरे साथ मोहब्बत में हद -ऐ -जूनून तक था 
वो खुद को वक़्त के पानी से धो चूका होगा ,

मेरी आवाज़ को जो साज़ कहा करता था 
मेरी आहोँ को याद कर के सो चूका होगा ,

वो मेरा प्यार , तलब और मेरा चैन -ओ -क़रार 
जफ़ा की हद में ज़माने का हो चूका होगा ,

तुम उसकी राह न देखो वो ग़ैर था साक़ी 
भुला दो उसको वो ग़ैरों का हो चूका होगा !

हो चुकी ‘ग़ालिब’ बलायें सब ..

हो चुकी ‘ग़ालिब’ बलायें सब 

कोई , दिन , गैर  ज़िंदगानी और है 
अपने जी में  हमने ठानी और है .

आतशे – दोज़ख में , यह गर्मी कहाँ ,
सोज़े -गुम्हा -ऐ -निहनी और है .

बारहन उनकी देखी हैं रंजिशें ,
पर कुछ अबके सिरगिरांनी और है .

दे के खत , मुहँ देखता है नामाबर ,
कुछ तो पैगामे जुबानी और है .

हो चुकी ‘ग़ालिब’, बलायें सब  तमाम ,
एक मरगे -नागहानी और है

आया है मुझे बेकशी..

आया है मुझे बेकशी

आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब 
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद

तमन्ना कोई दिन ..

तमन्ना कोई दिन

नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब “
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और

ऐसा भी कोई...

ऐसा भी कोई

“ग़ालिब ” बुरा न मान जो वैज बुरा कहे 
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे

उल्फ़त ही क्यों न हो..

उल्फ़त ही क्यों न हो

उल्फ़त पैदा हुई है , कहते हैं , हर दर्द की दवा 
यूं हो हो तो चेहरा -ऐ -गम उल्फ़त ही क्यों न हो .

दिल से तेरी निगाह ..

दिल से तेरी निगाह

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई 
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई

मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को 
वो वलवले कहाँ , वो जवानी किधर गई

इश्क़ मुझको नहीं....

इश्क़ मुझको नहीं

इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही 
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही 
कटा कीजिए न तालुक हम से 
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

कितने शिरीन हैं...

कितने शिरीन हैं

कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब 
गालियां खा के बेमज़ा न हुआ 
कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं 
आज ‘ग़ालिब ‘ गजलसारा न हुआ

लाज़िम था के...

लाज़िम था के

लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और
तनहा गए क्यों , अब रहो तनहा कोई दिन और

इस नज़ाकत का बुरा...

इस नज़ाकत का बुरा

इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या 
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने 
कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है 
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने

दिल दिया जान के ..

दिल दिया जान के

दिल दिया जान के क्यों उसको वफादार , असद 
ग़लती की के जो काफिर को मुस्लमान समझा

थी खबर गर्म के ग़ालिब...

थी खबर गर्म के ग़ालिब

थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ

जिस काफिर पे दम निकले

जिस काफिर पे दम निकले

मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले

तेरी दुआओं में असर

तेरी दुआओं में असर

तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा 
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख

वो निकले तो दिल निकले

वो निकले तो दिल निकले

ज़रा कर जोर सीने पर की तीर -ऐ-पुरसितम् निकले जो 
वो निकले तो दिल निकले , जो दिल निकले तो दम निकले

कागज़ का लिबास

कागज़ का लिबास

सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास 
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले 
अदल के तुम न हमे आस दिलाओ 
क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले

डोनाल्ड ट्रंप का भारत और पाकिस्तान तनाव पर बयान..

डोनाल्ड ट्रंप का भारत और पाकिस्तान तनाव पर बयान, कहा हमारे पास दोनों देशों के लिए अछि खबर गुरु वॉर को डोनाल्ड ट्रंप ने बताया, उन्होंने कहा ...